पिता की गैर मौजूदगी में
खुद से खरीदे हुए
बाजार के खिलौने
हमे खुश नहीं करते ,
खुरच देते हैं दिल की दीवारों को
और उकेर देते हैं हमारे खालीपन को,
एहसास दिलाते हैं किसी की गैरमौजूदगी
और बच्चा खिलौने खरीदना छोड़ देता है।
.
सब्जियों के दाम पता करते करते
कब उसके भीतर का बच्चा मर जाता है
पता ही नहीं चलता, वो पत्थर और वक्त के साथ
कम उम्र का पहाड़ बन जाता है
बिल्कुल अपनी माँ जैसा,
.
ठीक वैसे ही
माँ के सफेद कपड़ों पर
अब कोई मौसम नहीं खिलते
जैसे वो जिंदगी को भी
घर के काम जैसा बस पूरा कर रही हो,
.
किसी जश्न के मौके पर
जब तस्तरी रंगो से भरी जाती है
तब एक खांचा हमेशा ख़ाली रहता है
वो कभी रंगीन नहीं होता
वो रूह का खालीपन होता है
उस खांचे को भरा नहीं जा सकता,
.
यह खालीपन जैसे
खूबसूरत घर पर छत का न होना
खुद के साए का खुद से जुदा होना
और ऐसे मौकों पर अक्सर
हम सब आपस में मिलकर भी अकेले रह जाते हैं,
.
इन तंगहाली में
दूसरों के सलामती के सवाल
हमारी खामोशी को छील देते हैं
जैसे खुरच देते हैं
पर खामोशी तोड़ नहीं पाते,
.
फिर भी इस खामोशी को समेटे
हमारे जी भर जी लेने के जतन से
तकदीर की लकीरें चिढ़ेंगी हमसे,
.
एक दिन उठ खड़े होंगे
दुनिया जीतने के लिए,
आप भी देखना बाबा!
~सुभाष सोनी